10 महत्वपूर्ण फाइनेंशियल RATIO
नमस्कार दोस्तों,
क्या आप जानते हैं कि भारतीय शेयर बाजार में 7000 से ज्यादा कंपनियां लिस्टेड हैं? लेकिन इनमें से सिर्फ 500 कंपनियां ही ऐसी होती हैं, जिनमें निवेश करना सही माना जाता है। अब सवाल यह है कि हम इतनी सारी कंपनियों के बीच से कैसे पता लगाएं कि कौन सी कंपनी भविष्य में बड़ा मुनाफा कमाएगी और हमें अच्छा रिटर्न देगी?
सही कंपनी चुनने के लिए कुछ खास बातें ध्यान में रखनी चाहिए:
रेशियो एनालिसिस: कंपनी का रेशियो एनालिसिस करके यह जान सकते हैं कि कंपनी मुनाफे में है या घाटे में। इसके जरिए हम कंपनी की लिक्विडिटी, सॉल्वेंसी और प्रॉफिटेबिलिटी जैसे पहलुओं का विश्लेषण कर सकते हैं। ये फाइनेंशियल रेश्यो कंपनी के भविष्य की संभावनाओं को समझने में मदद करते हैं।
परिचय (Introduction)
- रेशियो एनालिसिस क्यों महत्वपूर्ण है?
- रेशियो एनालिसिस (Ratio Analysis) किसी कंपनी की वित्तीय स्थिति और प्रदर्शन को समझने का एक महत्वपूर्ण उपकरण है। इसका उपयोग निवेशक, प्रबंधक और वित्तीय विश्लेषक करते हैं ताकि वे कंपनी के आर्थिक पहलुओं का मूल्यांकन कर सकें और यह जान सकें कि कंपनी कितनी मजबूत या कमजोर है। यह विशेष रूप से शेयर बाजार और व्यवसाय में निवेश के निर्णय लेने के लिए उपयोगी होता है।
- रेशियो एनालिसिस क्या है?
- रेशियो एनालिसिस का अर्थ है कंपनी की वित्तीय रिपोर्ट्स से विभिन्न मापदंडों के आधार पर गणना किए गए अनुपातों का विश्लेषण करना। ये अनुपात कंपनी के मुनाफे, उसकी देनदारियों, परिसंपत्तियों, नकदी प्रवाह, और अन्य वित्तीय कारकों के बारे में गहन जानकारी प्रदान करते हैं। ये विभिन्न वित्तीय रिपोर्ट्स जैसे कि बैलेंस शीट, आय विवरण (Income Statement) और नकदी प्रवाह विवरण (Cash Flow Statement) से निकाले जाते हैं।
- रेशियो एनालिसिस की महत्वपूर्णता:
- वित्तीय स्थिति का मूल्यांकन: रेशियो एनालिसिस के जरिए कंपनी की वित्तीय स्थिति का गहराई से मूल्यांकन किया जा सकता है। यह कंपनी के लिक्विडिटी (Liquidity), सॉल्वेंसी (Solvency), प्रॉफिटेबिलिटी (Profitability) और एफिशिएंसी (Efficiency) के बारे में जानकारी देता है। उदाहरण के लिए, लिक्विडिटी रेशियो से यह पता चलता है कि कंपनी अपनी अल्पकालिक देनदारियों को कैसे पूरा कर सकती है, जबकि प्रॉफिटेबिलिटी रेशियो से कंपनी की लाभप्रदता का पता चलता है।
- जोखिम का आकलन: निवेशक के लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि कंपनी में निवेश करने का जोखिम कितना है। रेशियो एनालिसिस यह आकलन करने में मदद करता है कि कंपनी पर कितना कर्ज है और क्या वह इसे चुकाने में सक्षम है। डेब्ट-टू-इक्विटी रेशियो और इंटरेस्ट कवरेज रेशियो जैसे वित्तीय अनुपात इस बात का संकेत देते हैं कि कंपनी वित्तीय दबावों को कैसे झेल रही है।
- कंपनी की प्रगति और तुलना: रेशियो एनालिसिस के जरिए आप कंपनी की पिछले वर्षों की प्रगति को देख सकते हैं और यह भी जान सकते हैं कि वह दूसरी कंपनियों के मुकाबले कैसे प्रदर्शन कर रही है। यह तुलना न सिर्फ कंपनी के प्रदर्शन को आंकी जाने के लिए आवश्यक है, बल्कि निवेशकों को यह भी समझने में मदद करती है कि उनके पास कितने बेहतर विकल्प हैं।
- फंडामेंटल एनालिसिस में सहायक: रेशियो एनालिसिस फंडामेंटल एनालिसिस का एक प्रमुख हिस्सा है। यह निवेशकों को यह समझने में मदद करता है कि कंपनी का शेयर उसके वास्तविक मूल्य से कम है या ज्यादा। यह जानकारी निवेशकों को सही मूल्यांकन करने और उचित समय पर निवेश करने में सहायता करती है।
- निर्णय लेने में सहायक: रेशियो एनालिसिस के आधार पर निवेशक और कंपनी के प्रबंधन बेहतर वित्तीय निर्णय ले सकते हैं। प्रबंधन इस जानकारी का उपयोग करके अपने संसाधनों का कुशलता से प्रबंधन कर सकता है और निवेशक इसके आधार पर यह तय कर सकते हैं कि उन्हें कंपनी में निवेश करना चाहिए या नहीं।
- ———
प्रमुख फाइनेंशियल रेश्यो – Financial Ratios
बिजनेस क्वालिटी समझने के लिए रेश्यो (business quality)⬇
ROE – Return on Equity
ROCE – Return on Capital Employed
GM – Gross Margin
NPM – Ner Profit Margin
फाइनेंशियल स्ट्रैंथ समझने के लिए रेश्यो (Financial Strength) ⬇
D/E RATIO – Debt-to-Equity
ICR RATIO – Interest Coverage Ratio
CR – Current Ratio
वैल्यूएशन समझने के लिए रेश्यो (Valuation) ⬇
PE RATIO – Price-to-Earnings Ratio
PEG RATIO – price/earnings-to-growth ratio
PB RATIO – Price-to-book value
ROE (Return on Equity)
ROE का मतलब है “शेयरधारकों के निवेश पर लाभ।” यह एक वित्तीय मीट्रिक है जो यह दिखाता है कि कंपनी अपने शेयरधारकों के निवेश से कितना मुनाफा कमा रही है।
आसान भाषा में समझें:
- ROE बताता है कि अगर आपने कंपनी में पैसा लगाया है, तो उस पैसे पर आपको कितना लाभ हो रहा है।
- इसे प्रतिशत में दिखाया जाता है, जैसे कि अगर ROE 15% है, तो इसका मतलब है कि हर 100 रुपये के निवेश पर आपको 15 रुपये का लाभ मिल रहा है।
फॉर्मूला:

जहां:
- Net Income = कंपनी का कुल मुनाफा
- Shareholder’s Equity = कंपनी में शेयरधारकों का कुल निवेश
अगर किसी कंपनी का ROE कोई सालों से लगातार 15 से कम है तो उसकी संभावना बहुत ज्यादा है कि वह अपने इंडस्ट्री की एक कमजोर कंपनी है I और हमें ऐसे कंपनी में इन्वेस्ट नहीं करना चाहिए उसे तरह ROE>15 से ज्यादा होना चाहिए
ROCE -( Return on Capital Employed )
ROCE (पूंजी के उपयोग पर लाभ) यह बताता है कि किसी कंपनी ने अपनी पूंजी (पैसे) को कितनी अच्छी तरह से इस्तेमाल करके लाभ कमाया है। इसे समझने के लिए इसे इस तरह देखें:
- कंपनी ने जो पैसा लगाया है, उस पर उसे कितना लाभ हुआ।
- अगर ROCE ज्यादा है, तो मतलब कंपनी ने अपने पैसे से अच्छा मुनाफा कमाया है।
आसान उदाहरण:
अगर आपकी कंपनी ने 100 रुपये लगाए और उससे 30 रुपये का मुनाफा हुआ, तो इसका मतलब है कि कंपनी ने अपने निवेश से अच्छा फायदा कमाया। ROCE का उपयोग यह समझने के लिए किया जाता है कि क्या कंपनी अपने पैसे का सही उपयोग कर रही है
फॉर्मूला:

अगर किसी कंपनी का ROCE कोई सालों से लगातार 15 से कम है तो उसकी संभावना बहुत ज्यादा है कि वह अपने इंडस्ट्री की एक कमजोर कंपनी है I और हमें ऐसे कंपनी में इन्वेस्ट नहीं करना चाहिए उसे तरह ROCE>15 से ज्यादा होना चाहिए
GM – Gross Margin
Gross Margin का मतलब है एक कंपनी की कुल बिक्री से उसके सीधे लागत (जैसे सामग्री और श्रम) को घटाने के बाद बचा हुआ मुनाफा। इसे सबसे आसान भाषा में समझें:
आसान समझ:
- जब आप किसी चीज़ को बेचते हैं, तो उसे बनाने या खरीदने में जो खर्च होता है, उसे सीधा खर्च कहते हैं।
- Gross Margin यह बताता है कि आपके पास बिक्री से कितना पैसा बचा है, जब आप सीधे खर्च को हटा देते हैं।
उदाहरण:
मान लीजिए:
- आपने 100 रुपये में एक सामान खरीदा और उसे 150 रुपये में बेचा।
- यहाँ, आपका सीधा खर्च 100 रुपये है और आपकी बिक्री 150 रुपये है।
तो, Gross Margin होगा:
- Gross Margin = बिक्री – सीधा खर्च
- Gross Margin = 150 रुपये – 100 रुपये = 50 रुपये
इसका मतलब है कि आपकी बिक्री से 50 रुपये का मुनाफा बचा है।
फॉर्मूला:

अगर एक कंपनी का ग्रॉस मार्जिन पिछले 3 से 5 सालों में हर साल 50% से ज्यादा हो तो उसे अच्छा माना जाता है |
अगर हम एक इंडस्ट्री में कंपनी की तुलना कर रहे हैं तो लगातार भाई Gross Margin करने वाली कंपनी कर हमें डिटेल में एनालिसिस करना चाहिए क्योंकि ऐसी कंपनियों के पास प्राइसिंग पावर हो सकती है जो कंपनी की लंबे समय में एक अच्छा इन्वेस्टर बनती है इसलिए Gross Margin 50% से ज्यादा होना चाहिए
NPM – Net Profit Margin
Net Profit Margin का मतलब है कि आपकी कंपनी ने अपनी बिक्री (Revenue) से कितना शुद्ध मुनाफा कमाया है। इसे सबसे आसान भाषा में समझें तो:
Net Profit Margin यह बताता है कि हर 100 रुपये की बिक्री पर आपकी कंपनी ने कितने रुपये का शुद्ध मुनाफा कमाया। इसमें सभी खर्चों, जैसे कि उत्पादन लागत, टैक्स, ब्याज आदि को घटाने के बाद का मुनाफा देखा जाता है।
आसान उदाहरण:
अगर आपकी कंपनी ने 100 रुपये की बिक्री की और सारे खर्चे निकालने के बाद 10 रुपये बचे, तो Net Profit Margin होगा:
फॉर्मूला:

एक कंपनी का Net Profit Margin जितना ज्यादा होगा कंपनी इतनी अच्छी मानी जाएगी आम तेर पर पिछले 3 से 5 सालों में हर साल >15% से ज्यादा का Net Profit Margin बहुत अच्छा माना जाता है अगर हमें कोई ऐसी कंपनी मिलती है जिसका Net Profit Margin कोई सालों से लगातार >15% से ज्यादा हो तो हमें उसे कंपनी का डिटेल में एनालिसिस करना चाहिए क्योंकि वो एक बहुत अच्छी कंपनी हो सकती है इसलिए Net Profit Margin > 15% से ज्यादा होना चाहिएअगर
D/E RATIO – Debt-to-Equity Ratio
D/E Ratio (Debt-to-Equity Ratio) बहुत आसान भाषा में यह बताता है कि एक कंपनी ने जितना पैसा अपने व्यवसाय में लगाया है, उसमें से कितना कर्ज लिया है और कितना खुद का पैसा (मालिक का निवेश) है।
आसान शब्दों में:
अगर किसी कंपनी का D/E Ratio 2 है, तो इसका मतलब है कि कंपनी ने हर 1 रुपये की अपनी पूंजी के लिए 2 रुपये का कर्ज लिया है।
उदाहरण:
यदि कंपनी के पास 100 रुपये की अपनी पूंजी (Equity) है और उसने 200 रुपये का कर्ज (Debt) लिया है, तो D/E Ratio 2 होगा:
फॉर्मूला:

DEBT कंपनियों को फाइनेंशियल रूप से कमजोर बनाती है क्योंकि कंपनियों को लोन पर लगातार इंटरेस्ट देना पड़ता है उसे वजह से इन्वेस्टर पर ऐसी कंपनी में इन्वेस्ट करना पसंद करते हैं जिसे कोई लोन नहीं लिया या जिसका लोन बहुत कम है इसलिए इन्वेस्टर DEBT TO EQUITY RATIO को <1 से कम देखना पसंद करते हैं DEBT जितना कम हो, उतना अच्छा होता है, लेकिन यह बात फाइनेंशियल कंपनियों (जैसे बैंक और एनबीएफसी) पर पूरी तरह लागू नहीं होती। इन कंपनियों का व्यवसाय ही इस मॉडल पर चलता है कि वे कम ब्याज पर उधार लेते हैं और फिर उसी पैसे को ज्यादा ब्याज दर पर उधार देते हैं।
इसी कारण, हमें फाइनेंशियल कंपनियों (बैंक और एनबीएफसी) के Debt-to-Equity Ratio (D/E Ratio) की तुलना अन्य उद्योगों की कंपनियों से नहीं करनी चाहिए। जहां दूसरे उद्योगों में D/E Ratio एक से कम होना बेहतर माना जाता है, वहीं फाइनेंशियल कंपनियों के मामले में यह पैमाना उतना उचित नहीं है। उनके बिजनेस मॉडल में कर्ज (Debt) महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और इसलिए उनका D/E Ratio स्वाभाविक रूप से अधिक होता है।
संक्षेप में, Debt-to-Equity Ratio की सही तुलना के लिए, हमें उस कंपनी के सेक्टर को ध्यान में रखना चाहिए। वित्तीय कंपनियों के लिए इसका मापदंड अलग होता है क्योंकि उनका व्यवसाय कर्ज आधारित होता है।
ICR RATIO – Interest Coverage Ratio
Interest Coverage Ratio एक वित्तीय मेट्रिक है जो बताता है कि कोई कंपनी अपने कमाए हुए पैसे से कितनी बार अपने ब्याज का भुगतान कर सकती है। इसे बहुत आसान भाषा में समझें तो:
Interest Coverage Ratio यह मापता है कि कंपनी के पास इतना मुनाफा है कि वो अपने लोन या कर्ज पर लगने वाले ब्याज को आसानी से चुका पाए। अगर यह अनुपात ज्यादा है, तो इसका मतलब कंपनी के लिए कर्ज चुकाना आसान है।
आसान उदाहरण:
अगर आपकी कंपनी ने 10 लाख रुपये कमाए और आपको 2 लाख रुपये ब्याज चुकाना है, तो आपका Interest Coverage Ratio 5 होगा
फॉर्मूला:

अगर किसी कंपनी का Interest Coverage Ratio ज्यादा हो तो यह बताता है कि कंपनी अपने प्रॉफिट से इंटरेस्ट की खर्च का पेमेंट आसानी से कर सकती है Interest Coverage Ratio >3 से ज्यादा होगा तो अच्छा रहेगा उसका यह मतलब है कि कंपनी के पास अभी जितना पैसा है अभी कंपनी तीन बार इंट्रेस्ट का पेमेंट कर सकता है
CR – Current Ratio
Current Ratio एक वित्तीय मापदंड है जो यह बताता है कि कोई कंपनी अपनी SHORT TERMS ASSETS से SHORT TERM LIABILITIES को चुकाने में कितनी सक्षम है। इसे बहुत आसान भाषा में समझें तो:
Current Ratio यह दर्शाता है कि कंपनी के पास जितने भी जल्दी से नकदी में बदले जा सकने वाले संसाधन (जैसे नकद, इन्वेंटरी, देय राशि) हैं, वो उसकी जल्दी चुकाने वाली देनदारियों (जैसे उधारी, बिल) से कितने गुना ज्यादा हैं।
आसान उदाहरण:
अगर किसी कंपनी के पास 100 रुपये के संसाधन हैं जिन्हें जल्दी नकद में बदला जा सकता है, और उसे अगले कुछ महीनों में 50 रुपये की देनदारी चुकानी है, तो उसका Current Ratio होगा: 2
फॉर्मूला:

इन्वेस्टर CURRENT RATIO को 1.5 से 3 के बीच देखना पसंद करते हैं एक से कम के CURRENT RATIO को बहुत रिस्की माना जाता है क्योंकि वह कंपनी को फाइनेंशियल PROBLEMS में डाल सकता है पर उसका यह मतलब नहीं है की CURRENT RATIO को बहुत ज्यादा होना चाहिए क्योंकि बहुत हाई CURRENT RATIO को भी सही नहीं माना जाता है ऐसा इसलिए क्योंकि बहुत हाई CURRENT RATIO का मतलब है कि कंपनी अपने करंट ASSETS से सही तरीके से इस्तेमाल नहीं कर रही है इन्वेस्टर CURRENT RATIO को 3 से ज्यादा देखना पसंद नहीं करते हैं इसलिए CURRENT RATIO 1.5 से 3 के बीच होना चाहिए
PE RATIO – Price-to-Earnings Ratio
Price-to-Earnings (P/E) Ratio एक वित्तीय मेट्रिक है जो किसी कंपनी के शेयर की कीमत और उसके प्रति शेयर कमाई (EPS) के बीच के संबंध को दिखाता है। इसे बहुत आसान भाषा में समझें:
P/E Ratio पे रेशों का यह मतलब है कि इन्वेस्टर आज कंपनी का ₹1 की प्रॉफिट के लिए कितना रुपया देने के लिए तैयार है
आसान उदाहरण:
अगर किसी कंपनी का एक शेयर ₹100 का है और कंपनी की प्रति शेयर कमाई ₹10 है, तो P/E Ratio होगा: 10
फॉर्मूला:

वैल्यू इन्वेस्टर्स उन कंपनियों में इन्वेस्ट करना पसंद करते हैं जिनका PE RATIO कम होता है क्योंकि PE RATIO का कम होना बताता है कि कंपनी का वैल्यूएशन कम है और वैल्यू इन्वेस्टर्स उन कंपनी में इन्वेस्ट करने से बचती है जिनका PE RATIO ज्यादा हो | < 15 से कम के PE RATIO वाले कंपनियों को UNDERVALUED माना जाता है और 15 से 30 के बीच PE RATIO वाली कंपनियों को नॉर्मल माना जाता है और 30 से ऊपर PE RATIO वाले कंपनयों को OVERVALUED माना जाता है | अगर एक कंपनी का PE RATIO उसके पिछले 3 से 5 सालों के एक्सचेंज PE RATIO से कम है तो उससे भी UNDERVALUED माना जाता है और अगर ज्यादा हो तो OVERVALUED माना जाता है | इसलिए PE RATIO <15 से कम होना चाहिए |
PEG RATIO – price/earnings-to-growth ratio
Price/Earnings-to-Growth (PEG) Ratio एक ऐसा मेट्रिक है जो किसी कंपनी के शेयर की कीमत, उसके मुनाफे और भविष्य में मुनाफे की वृद्धि दर के बीच संबंध को बताता है। इसे आसान भाषा में समझें तो:
PEG Ratio आपको यह बताता है कि किसी कंपनी का शेयर उसकी कमाई और भविष्य में बढ़ने की क्षमता के मुकाबले सस्ता है या महंगा।
आसान भाषा में:
- P/E Ratio (Price-to-Earnings Ratio) आपको बताता है कि आप कंपनी की एक यूनिट कमाई के लिए कितना पैसा दे रहे हैं।
- PEG Ratio यह बताता है कि उस P/E Ratio में भविष्य में कंपनी की मुनाफे की बढ़ोतरी भी शामिल है या नहीं।
अगर PEG Ratio 1 के आसपास है, तो इसका मतलब है कि कंपनी की कीमत उसके मुनाफे की बढ़ोतरी के हिसाब से सही है। अगर यह 1 से कम है, तो शेयर सस्ता माना जाता है, और अगर 1 से ज्यादा है, तो महंगा।
फॉर्मूला:

अगर एक कंपनी का PEG RATIO <1 से कम है तो उसे UNDERVALUED माना जाता है और >1 से ज्यादा हो तो उसे OVERVALUED माना जाता है |
PB RATIO – Price-to-book value
Price-to-Book Value (P/B Ratio) एक ऐसा मापदंड है जो किसी कंपनी के शेयर की बाजार में कीमत (Market Price) और उसकी बुक वैल्यू (कंपनी की असली कीमत या नेट वर्थ) की तुलना करता है।
सबसे आसान भाषा में:
Price-to-Book Value यह बताता है कि अगर आप किसी कंपनी का शेयर खरीदते हैं, तो आप उसे उसकी असली कीमत से महंगा खरीद रहे हैं या सस्ता।
- अगर P/B Ratio 1 से कम है, तो मतलब कंपनी का शेयर उसकी बुक वैल्यू से सस्ता मिल रहा है।
- अगर P/B Ratio 1 से ज्यादा है, तो मतलब शेयर उसकी बुक वैल्यू से महंगा मिल रहा है।
उदाहरण:
अगर किसी कंपनी की बुक वैल्यू 100 रुपये है और उसका शेयर बाजार में 150 रुपये में बिक रहा है, तो P/B Ratio 1.5 होगा:
फॉर्मूला:

PRICE TO BOOK RATIO सबसे ज्यादा असरदार फाइनेंशियल कंपनियों के एनालिसिस में होता है इसलिए PRICE TO BOOK RATIO <1 से कम होना चाहिए
“हमारे लेख को पढ़ने के लिए धन्यवाद! अगर आपको यह जानकारी उपयोगी लगी हो, तो इसे अपने दोस्तों के साथ साझा करें।”- investorfire.in
